ईपीआर जैसे कड़े नियम अब अवसर में बदल रहे हैं: दीपक मिश्रा

Priyanshu Dhoundiyal

प्लास्टिक अब सिर्फ एक पर्यावरणीय चुनौती नहीं, बल्कि आर्थिक और तकनीकी अवसर का माध्यम भी बन चुका है। भारत मंडपम, प्रगति मैदान में आयोजित ‘द्वितीय ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑन प्लास्टिक रिसाइक्लिंग एंड सस्टेनेबिलिटी (जीसीपीआरएस)’ के उद्घाटन के अवसर पर रसायन एवं पेट्रो रसायन तथा उर्वरक मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री दीपक मिश्रा ने कहा कि प्लास्टिक उद्योग ने ईपीआर (एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी) जैसे कड़े नियमों को अवसर में बदलकर नई संभावनाओं को जन्म दिया है। जैसे प्लास्टिक हर जगह मौजूद और लगभग अजर-अमर है, वैसे ही यह उद्योग भी लचीला और जीवंत है। जो भी चुनौती आती है, वह उसे पार कर लेता है।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत में अब पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) बोतलों की लगभग 90% रीसाइक्लिंग की जा रही है, और यह उद्योग की नवाचार क्षमता और तकनीक को अपनाने की तत्परता का प्रमाण है। रसायन एवं पेट्रो रसायन विभाग की निदेशक सुश्री वंदना ने कहा कि प्लास्टिक अपशिष्ट अब केवल एक देश की समस्या नहीं, बल्कि यह एक वैश्विक उत्तरदायित्व है। सरकार, उद्योग और उपभोक्ता—तीनों को एक साथ आकर इस चुनौती का समाधान निकालना होगा। जीसीपीआरएस जैसे मंच सहयोग की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।” एआईपीएमए (ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन) के गवर्निंग काउंसिल के चेयरमैन श्री अरविंद डी. मेहता ने कहा कि भारत अब केवल उत्पादक देश नहीं रहा, बल्कि रिसाइक्लिंग में दक्षता प्राप्त कर वैश्विक मॉडल बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। प्लास्टिक उद्योग को केवल समस्या की दृष्टि से नहीं, समाधान की दृष्टि से भी देखना होगा। यह उद्योग एक ओर अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरणीय चुनौतियों को जन्म दे रहा है। जीसीपीआरएस 2025 के चेयरमैन श्री हितेन भेडा ने कहा कि पुनर्चक्रण ही वह पुल है जो पर्यावरण और उद्योग के बीच संतुलन बना सकता है। एआईपीएमए अध्यक्ष श्री मनोज आर. शाह ने कहा कि युवाओं को न केवल तकनीकी रूप से सशक्त बनाना होगा, बल्कि उन्हें पर्यावरणीय जिम्मेदारी का भाव भी देना होगा। सम्मेलन में वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि आने वाले समय में तकनीकी नवाचार और युवाओं की भागीदारी ही इस क्षेत्र को आगे ले जाएगी। जीसीपीआरएस में एक विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें प्लास्टिक रिसाइक्लिंग की नवीनतम तकनीकों और व्यावहारिक मॉडलों को प्रदर्शित किया गया। फार्मा, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में प्रयुक्त प्लास्टिक की पुनर्प्रक्रिया के व्यवहारिक समाधान सम्मेलन का मुख्य आकर्षण रहे। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का प्लास्टिक रिसाइक्लिंग उद्योग अगले 8 वर्षों में 6.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जिससे देश को पर्यावरणीय लाभ के साथ-साथ आर्थिक बढ़त भी मिल सकती है। इस आयोजन में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, स्वच्छ भारत मिशन, आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, लघु मध्यम व सुक्ष्म उद्योग मंत्रालय और रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय का सहयोग सराहनीय रहा। सिद्धार्थ आर. शाह, कैलाश बी. मुरारका, राजेश गौबा, हनुमंत सर्राफ और हरेन सांघवी जैसे आयोजकों की भूमिका आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण रही। सम्मेलन में देश-विदेश की 175 से अधिक कंपनियों और संगठनों ने भाग लिया। 230 से अधिक स्टॉल लगे हैं। 18 देशों से उद्योग विशेषज्ञ, नीति-निर्माता और रिसाइक्लिंग क्षेत्र के नेतृत्वकर्ता शामिल हुए। यहां उठे सवाल और सुझाए गए समाधान आने वाले वर्षों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के विमर्श की दिशा तय करेंगे। जीसीपीआरएस 2025 अब सिर्फ एक सम्मेलन नहीं, बल्कि पर्यावरण और उद्योग के बीच सहयोग का वैश्विक मंच बनकर उभर रहा है।

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